ज़िन्दगी की हक़ीक़त ख्वाब से शुरू होती है

ज़िन्दगी की हक़ीक़त ख्वाब से शुरू होती है।

ख्वाब फूलों के होते हैं ,
ज़िन्दगी काँटों से गुज़रती है।

ख्वाब अपनों के होते हैं,
ज़िन्दगी गैरों में भटकती है।

ख्वाब साथी के होते हैं,
और ज़िन्दगी बागी से मिलाती है।

ख्वाब हर उस पहलू के होते हैं,
जो ज़िन्दगी नहीं दिखाती है।

कभी-कभी मैं उस ज़मीन को ढूंढती हूँ,
जिस ज़मीन पर, ज़िन्दगी की हकीकत
ख्वाब बनकर
अपनी इमारत की बुनियाद रखती है।
उस इमारत को हर रंग से सजाती है।
और फिर….

उसके तिल-तिल कर बिखरने का,
इंतज़ार करती है;

कि वो…. फिर कहीं, किसी और ज़मीन पर
कोई और इमारत खड़ी करेगी।

आख़िर, ज़िन्दगी की हक़ीक़त ख्वाब से ही तो शुरू होती है।

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